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Sunday, February 13, 2011

यहां दफन है एक दास्ताने-मोहब्बत
अब्दुल सलीम खा
बिजुआ। गुलरिया से महज दो किमी दूर डुंडवा गांव की गलियां हर एक गांव के जैसी हैं। वही मिट्टी की सोंधी महक और वही गांव में लगने वाली चौपालें। लोगों में आपस में राम जोहार है, फर्क इतना है कि इस गांव ने दो मोहब्बत करने वालों को अपनी आंखों के सामने फना होते देखा है। अब हर धड़कन धड़कने से पहले उस मंजर को याद कर मोहब्बत के नाम से तौबा कर बैठती है।
डुंडवा गांव की यह कहानी कुछ बरस पुरानी है, लेकिन जब वैलेंटाइन -डे आता है तो बरबस ही ताजा हो उठता है। नौसर गांव का रवि मेहनतकश नौजवान था। वह अक्सर अपने गांव से नहर की तरफ टहलने जाता था। इसी रास्ते में डुंडवा गांव की निर्जला का घर पड़ता था। मिलना जुलना बढ़ने पर दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे। उनका धर्म एक था, लेकिन जात की दीवारें रोड़ा थी। दोनों के घरवालों ने उन्हें खूब समझाया कि बिरादरी एक नहीं है, सो विवाह कैसे होगा। दोनों के प्यार पर पहरे बिठा दिए, लेकिन इन बातों से रवि और निर्जला पर कोई फर्क न पड़ा, बंदिंशे देखकर दोनों घर छोड़कर चले गए।
शहर में पहुंचकर रवि मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहा था। वक्त बीता और यहां गांव में सब सामान्य हो गया। निर्जला इस बीच अपने घर आने जाने लगी। न जाने किस बात पर निर्जला रवि के साथ फिर जाने को तैयार न हुई। अब शहर से रवि गांव आ गया,और एक दिन रवि निर्जला के घर चला गया। इसे घरवालों का खौफ कहें या फिर कुछ और निर्जला ने रवि के साथ जाने से मना कर दिया। आखिरी बार निर्जला से हां या ना सुनने के लिए रवि अगली सुबह डुंडवा आया। निर्जला ने फिर साथ जाने से मना कर दिया।
इसके बाद रवि निर्जला को खींचकर गांव की चौपाल तक ले गया, इस बीच पूरा गांव वहां जमा हो गया था।
अब रवि ने गांव वालों को अपनी जेब की तरफ इशारा करके कहा कि बीच में न आना जेब में बम है। सबके सामने अपनी मोहब्बत निर्जला पर चाकू से वार किए।
हर वार के बाद एक जहर की गोली खुद भी चबा रहा था। पांच वार और पांच जहर की गोली और दोनों की कहानी जहां से शुरू हुई थी, और वहीं खत्म हो गई।
(कहानी में नाम बदल दिए गए हैं)

6 comments:

  1. ये प्यार नही जुनून था। प्यार में मरना-मारना नही बल्कि आसमां की बुलंदी तक कुर्बानी की मिसाल कायम की जाती है।

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  2. इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|

    अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -

    वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
    बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!

    शुभाकॉंक्षी|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    (देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
    फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

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  4. दर्दनाक दास्ताँ - नाम कुछ भी हों क्या फर्क पड़ता है

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  5. मेरे लेख पर कमेन्त के लिये आप सब का धन्यवाद

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  6. जूनून-ए-इश्क.

    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसके आलेख "नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव" का अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । शुभकामनाओं सहित...
    http://najariya.blogspot.com/2011/02/blog-post_18.html

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