यहां दफन है एक दास्ताने-मोहब्बत
स
अब्दुल सलीम खा
बिजुआ। गुलरिया से महज दो किमी दूर डुंडवा गांव की गलियां हर एक गांव के जैसी हैं। वही मिट्टी की सोंधी महक और वही गांव में लगने वाली चौपालें। लोगों में आपस में राम जोहार है, फर्क इतना है कि इस गांव ने दो मोहब्बत करने वालों को अपनी आंखों के सामने फना होते देखा है। अब हर धड़कन धड़कने से पहले उस मंजर को याद कर मोहब्बत के नाम से तौबा कर बैठती है।
डुंडवा गांव की यह कहानी कुछ बरस पुरानी है, लेकिन जब वैलेंटाइन -डे आता है तो बरबस ही ताजा हो उठता है। नौसर गांव का रवि मेहनतकश नौजवान था। वह अक्सर अपने गांव से नहर की तरफ टहलने जाता था। इसी रास्ते में डुंडवा गांव की निर्जला का घर पड़ता था। मिलना जुलना बढ़ने पर दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे। उनका धर्म एक था, लेकिन जात की दीवारें रोड़ा थी। दोनों के घरवालों ने उन्हें खूब समझाया कि बिरादरी एक नहीं है, सो विवाह कैसे होगा। दोनों के प्यार पर पहरे बिठा दिए, लेकिन इन बातों से रवि और निर्जला पर कोई फर्क न पड़ा, बंदिंशे देखकर दोनों घर छोड़कर चले गए।
शहर में पहुंचकर रवि मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहा था। वक्त बीता और यहां गांव में सब सामान्य हो गया। निर्जला इस बीच अपने घर आने जाने लगी। न जाने किस बात पर निर्जला रवि के साथ फिर जाने को तैयार न हुई। अब शहर से रवि गांव आ गया,और एक दिन रवि निर्जला के घर चला गया। इसे घरवालों का खौफ कहें या फिर कुछ और निर्जला ने रवि के साथ जाने से मना कर दिया। आखिरी बार निर्जला से हां या ना सुनने के लिए रवि अगली सुबह डुंडवा आया। निर्जला ने फिर साथ जाने से मना कर दिया।
इसके बाद रवि निर्जला को खींचकर गांव की चौपाल तक ले गया, इस बीच पूरा गांव वहां जमा हो गया था।
अब रवि ने गांव वालों को अपनी जेब की तरफ इशारा करके कहा कि बीच में न आना जेब में बम है। सबके सामने अपनी मोहब्बत निर्जला पर चाकू से वार किए।
हर वार के बाद एक जहर की गोली खुद भी चबा रहा था। पांच वार और पांच जहर की गोली और दोनों की कहानी जहां से शुरू हुई थी, और वहीं खत्म हो गई।
(कहानी में नाम बदल दिए गए हैं)