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Friday, February 18, 2011


बेटियां पढ़ लिखकर संवारेगीं॒घर की किस्मत




परिषदीय स्कूलों में शुरू हुए व्यावसायिक कोर्स
सीख रहीं सिलाईं, ब्यूटीशियन कोर्स के साथ अचार बनाना

अब्दुल सलीम खान
बिजुआ।॒गरीब की बिटिया अब सयानी होकर बोझ नहीं कहलायेगी, परिषदीय स्कूलों में छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए॒सर्व शिक्षा अभियान के तहत रोजगार मुहैया कराने वाले कोर्स शुरू कराए गए॒हैं जूनियर हाई स्कूल स्तर की यह छात्राएं पढ़ाई के साथ-साथ सिलाई-कटाई,॒फल संरक्षण के साथ ब्यूटीशियन॒कोर्स की तालीम भी पा रही हैं।
बेटी पढ़ी लिखी होगी तो दो परिवार को संवारेगी, गांवो॒में कम उम्र में ब्याह के हो जाने से तमाम बालिकाएं आगे शिक्षा से महरूम रह जाती है, इसलिए॒परिषदीय स्कूलों में कक्षा से ८॒तक की छात्राओं को सर्व शिक्षा अभियान के तहत किताबी शिक्षा के साथ व्यावहारिक एवं रोजगारपूरक शिक्षा दी जा रही है। समन्वयक बालिका शिक्षा रेनू श्रीवास्तव बताती हैं कि इन छात्राओं की पढ़ाई छूटने के बाद घर पर कोई रोजगार कर सके, वहीं शादी हो जाने के बाद बेटी ससुराल में परिवार का खर्च उठा सके।
फल संरक्षण कोर्स में सीख रहीं अचार बनाना
सर्व शिक्षा अभियान से व्यावसायिक शिक्षा देने के लिए॒कई स्कूलों में केंद्र बनाए गए॒हैं। पूर्व माध्यमिक विद्यालय गुलरिया॒में ५० दिवसीय कोर्स शुरू किया गया है। ट्रेनर सावित्री देवी इन्हें बताती हैं कि अचार और मुरब्बा कैसे बनाया जाता है? मौसम के लिहाज से कौन से फल लाभकारी है और कैसे उनका संरक्षण करें?
सिलाई कटाई से सीखेंगी पैरो॒पर खड़ा होना
स्कूल की छात्राएं कपड़ों की सिलाई एवं कटाई भी सीख रहीं हैं, पढ़ाई के साथ रोजगार भी मिले, इसकी जुगत विभाग के साथ इन बालिकाओं को भी है।
गांव की बेटी भी बनेगी ब्यूटीशियन॒
महिलाओं को संजने॒संवरने के लिए॒शहर का रुख करने की जरूरत शायद पड़े, परिषदीय स्कूल की छात्राओं को पढ़ाई के साथ ब्यूटीशियन॒की तालीम भी दी जा रही है। गुलरिया॒में इसके लिए॒एक एनजीओ को जिम्मेदारी॒दी गई है। ट्रेनर अमिता शर्मा इन छात्राओं को संजने॒संवरने का हुनर सिखा रही है।
इंसेट॒
उप बेसिक शिक्षा अधिकारी॒केशव राम मिश्रा कहते हैं कि बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए॒व्यवसायिक कोर्स का संचालन किया जा रहा है, परिषदीय स्कूलों से पढ़कर ये बेटियां खुद ही अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी।

Sunday, February 13, 2011

यहां दफन है एक दास्ताने-मोहब्बत
अब्दुल सलीम खा
बिजुआ। गुलरिया से महज दो किमी दूर डुंडवा गांव की गलियां हर एक गांव के जैसी हैं। वही मिट्टी की सोंधी महक और वही गांव में लगने वाली चौपालें। लोगों में आपस में राम जोहार है, फर्क इतना है कि इस गांव ने दो मोहब्बत करने वालों को अपनी आंखों के सामने फना होते देखा है। अब हर धड़कन धड़कने से पहले उस मंजर को याद कर मोहब्बत के नाम से तौबा कर बैठती है।
डुंडवा गांव की यह कहानी कुछ बरस पुरानी है, लेकिन जब वैलेंटाइन -डे आता है तो बरबस ही ताजा हो उठता है। नौसर गांव का रवि मेहनतकश नौजवान था। वह अक्सर अपने गांव से नहर की तरफ टहलने जाता था। इसी रास्ते में डुंडवा गांव की निर्जला का घर पड़ता था। मिलना जुलना बढ़ने पर दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे। उनका धर्म एक था, लेकिन जात की दीवारें रोड़ा थी। दोनों के घरवालों ने उन्हें खूब समझाया कि बिरादरी एक नहीं है, सो विवाह कैसे होगा। दोनों के प्यार पर पहरे बिठा दिए, लेकिन इन बातों से रवि और निर्जला पर कोई फर्क न पड़ा, बंदिंशे देखकर दोनों घर छोड़कर चले गए।
शहर में पहुंचकर रवि मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहा था। वक्त बीता और यहां गांव में सब सामान्य हो गया। निर्जला इस बीच अपने घर आने जाने लगी। न जाने किस बात पर निर्जला रवि के साथ फिर जाने को तैयार न हुई। अब शहर से रवि गांव आ गया,और एक दिन रवि निर्जला के घर चला गया। इसे घरवालों का खौफ कहें या फिर कुछ और निर्जला ने रवि के साथ जाने से मना कर दिया। आखिरी बार निर्जला से हां या ना सुनने के लिए रवि अगली सुबह डुंडवा आया। निर्जला ने फिर साथ जाने से मना कर दिया।
इसके बाद रवि निर्जला को खींचकर गांव की चौपाल तक ले गया, इस बीच पूरा गांव वहां जमा हो गया था।
अब रवि ने गांव वालों को अपनी जेब की तरफ इशारा करके कहा कि बीच में न आना जेब में बम है। सबके सामने अपनी मोहब्बत निर्जला पर चाकू से वार किए।
हर वार के बाद एक जहर की गोली खुद भी चबा रहा था। पांच वार और पांच जहर की गोली और दोनों की कहानी जहां से शुरू हुई थी, और वहीं खत्म हो गई।
(कहानी में नाम बदल दिए गए हैं)

Thursday, February 10, 2011


मंदिर की दीवारों पर दर्ज हैं मासूमों की फरियाद




मन्नतों का मंदिर प्राचीन लक्ष्मणयती
लोग अपनों की सलामती के लिए करते हैं प्रार्थना
बिजुआ। मंदिर की दर-ओ-दीवार पर दर्ज हैं वो मन्नतें, जो लोगों ने अपनों के लिए भगवान से कीं। श्रद्धालुओं ने अपने परिवार और शुभ चिंतकों के लिए मन्नतें कोयले से दीवारों पर लिखीं हैं। ताकि हर आनेजाने वाला इन इबारतों को पढ़े । इन इबारतों में किसी ने भगवान से अच्छी शिक्षा के लिए दुआ की, तो किसी ने मम्मी-पापा को खुश रखने की भगवान से प्रार्थना की। कोई अपने भाई के बड़ा हो जाने की, तो किसी ने गुमशुदा भाई से मिलवाने की इच्छा जताई है। कहते हैं कि दुआएं दिल से की जाएं, तो वह भगवान तक जरूर पहुंचती हैं। इन दीवारों पर लिखीं इबारतें बच्चों की मासूमियत तो बयां करती ही हैं। गोला से सटे लाल्हापुर गांव का लक्ष्मणयती स्थान एतिहासिक होने के साथ धर्मिक मान्यताओं को समेटे है। भगवान लक्ष्मण की मूर्ति वाला मंदिर क्षेत्र में अनूठा है। प्राचीनकाल के इस मंदिर पर श्रद्घालुओं का जमावड़ा लगा रहता है। यहां आने वाले लोग मत्था टेककर भगवान शंकर से प्रार्थना करते हैं। साथ ही इन दीवारों पर अपनी आरजू भी लिख देते हैं। इस इबारत में एक छोटी बच्ची ने अपने भाई के जल्दी बड़े होने की कामना की, तो एक ने लिखा कि भगवान मम्मी को अच्छा कर दो, उनका दर्द देखा नहीं जाता। किसी ने प्रार्थना की है कि मैं दादा की लाडली बन जाऊं। एक बच्चे ने अपने लिए नहीं अपने मम्मी पापा की सलामती की भगवान से दुआ की है। एक ने तो रोजगार में तरक्की की कामना की है। कोयले से लिखी इबारतों से दीवार भर चुकी है, लेकिन इन्हीं इबारतों पर आने वाले भक्त फरियाद लिखकर अपनी आस्था का सुबूत देते हैं।