मन्नतों का मंदिर प्राचीन लक्ष्मणयती
लोग अपनों की सलामती के लिए करते हैं प्रार्थना
बिजुआ। मंदिर की दर-ओ-दीवार पर दर्ज हैं वो मन्नतें, जो लोगों ने अपनों के लिए भगवान से कीं। श्रद्धालुओं ने अपने परिवार और शुभ चिंतकों के लिए मन्नतें कोयले से दीवारों पर लिखीं हैं। ताकि हर आनेजाने वाला इन इबारतों को पढ़े । इन इबारतों में किसी ने भगवान से अच्छी शिक्षा के लिए दुआ की, तो किसी ने मम्मी-पापा को खुश रखने की भगवान से प्रार्थना की। कोई अपने भाई के बड़ा हो जाने की, तो किसी ने गुमशुदा भाई से मिलवाने की इच्छा जताई है। कहते हैं कि दुआएं दिल से की जाएं, तो वह भगवान तक जरूर पहुंचती हैं। इन दीवारों पर लिखीं इबारतें बच्चों की मासूमियत तो बयां करती ही हैं। गोला से सटे लाल्हापुर गांव का लक्ष्मणयती स्थान एतिहासिक होने के साथ धर्मिक मान्यताओं को समेटे है। भगवान लक्ष्मण की मूर्ति वाला मंदिर क्षेत्र में अनूठा है। प्राचीनकाल के इस मंदिर पर श्रद्घालुओं का जमावड़ा लगा रहता है। यहां आने वाले लोग मत्था टेककर भगवान शंकर से प्रार्थना करते हैं। साथ ही इन दीवारों पर अपनी आरजू भी लिख देते हैं। इस इबारत में एक छोटी बच्ची ने अपने भाई के जल्दी बड़े होने की कामना की, तो एक ने लिखा कि भगवान मम्मी को अच्छा कर दो, उनका दर्द देखा नहीं जाता। किसी ने प्रार्थना की है कि मैं दादा की लाडली बन जाऊं। एक बच्चे ने अपने लिए नहीं अपने मम्मी पापा की सलामती की भगवान से दुआ की है। एक ने तो रोजगार में तरक्की की कामना की है। कोयले से लिखी इबारतों से दीवार भर चुकी है, लेकिन इन्हीं इबारतों पर आने वाले भक्त फरियाद लिखकर अपनी आस्था का सुबूत देते हैं।
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